शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

ek pal

एक पल हमारी जीवन में कितना महत्व रखता है ये कभी सोचा है आपने, नहीं न।  इस एक पल में  कितना कुछ बदल जाता है। ये कोई नहीं जानता है पर इसके बदलने से हमारा जीवन बदल जाता है।  ये एक पल किसी के जीवन में खुशी ला देता है तो दूसरी ओर गम। एक पल में इंसान ख़ुशी से भर जाता है तो दूसरी ओर उसे गम ही प्राप्त होता है। इस ख़ुशी और गम का तालमेल मेरे जीवन में एक साथ देखने को मिला। एक पल इतनी ख़ुशी मिली की हमसे सहेजी न गई तो दूसरी ओर इतना गम मिला की सहा न गया। आज भी वो दिन याद है जब मुझे इतनी बड़ी ख़ुशी मिली थी। तो मन में कई सपने संजोये थे की मानो पूरी संसार की ख़ुशी हमारी झोली में आ गयी। पर किसी ने सच ही  हस्त हुआ चेहरा धोखा है। धीरे-धीरे मेरी ख़ुशी बढ़ती जा रही थी सपने ने उड़ने भरना शुरू कर दी थी, की अचानक जैसे हमारे सपनो को हमारी नज़र लग गयी थी एक ही पल में सब बदल गया। जिसके लिए मई इतनी खुश थी उसी की वजह से आज बहुत जयादा दुखी भी हूपर इस नाराज़गी का कारन क्या आज तक हमे मालूम न हुआ। बस एक ख्वाहिश रह गयी दिल में की काश मेरी वो गलती मुझे पता हो जाती तो हमें इतना दुःख न होता। ये एक पल हमारे चहरे के मुस्कान व उसी चहरे पर उदासी का कारन बन सकती है। मेरी हमेशा शिकायत रहेगी उस इन्सान से की आखि मेरी गलती क्या थी इतना तो बता दिया होता। 


बुधवार, 20 अगस्त 2014

stri or purush bhin hai or yahi unka akarshan bhi




स्त्री और पुरुष बुनियादी रूप से भिन्ह है। भिन्ह से यह अर्थ नहीं है की वे ऊचे-नीचे है। दोनों समान है , लेकिन एक दूसरे से बिलकुल विपरीत है।  और यह उनकी विपरीता ज़रूरी है।  इन दो विपरीताओ से मिलकर ही तो जीवन की धरा बहती है।  वे विपरीत है, इसलिए उनमे आकर्षण और कलह भी है।  उनके बीच कभी भी सुलह नहीं हो पाती है।  उनकी विपरीतता के कारण खिचाव है , और विपरीता के कारण ही आकर्षण भी। पुरुष अधरा है स्त्री के बिना।, स्त्री अधूरी है पुरुष के बिना।  पुरुष पूरा होना चाहता है स्त्री के साथ और स्त्री पूरी होना चाहती है पुरुष के साथ। लेकिन जिससे हम पूरा होना चाहते , है वह हमारे विपरीत है. तो एक निश्चित कलह भी आते और दूर भी जाते है.  

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

sawan ka pahla din

सावन का पहला दिन। इस बार  सावन का  पहला दिन मेरी जिंदगी का सबसे ख़ास रहा।  क्यूंकि इस दिन से ही मेरी जिंदगी में हरियाली आ गई। वैसे भी सावन के आते ही पर्यावरण में हरियाली आ जाती है,  ठीक उसी प्रकार इस सावन की फुहार ने मेरी जिंदगी में बारिश की चाँद बून्द से इस सूखे हुए पेड़ को हरा भरा कर दिया है।जैसे एक बेजान व सूखे पेड़ में सावन की फुहार से उसकी चमक लौट आती है। पहले अधूरी थी मई पर अब मई पूरी हूँ जैसे दिए के संग बाती , सावन के संग हरियाली , बिना स्याही के कलम।  आज इतनी खुशी मिली है मुझे की इन चंद लफ्ज़ो में कहना आसान नहीं है पर फिर भी मन है जो मानता ही नहीं है तोह अपने उस बेहतरीन पल को याद करके मै ये लिख रही हूँ।  इस बार का सावन मेरी जिंदगी का खा बन गया